बसपा से कांग्रेस में आए 6 में से 5 विधायकों ने कांग्रेस से मांगी टिकट गारंटी
– फोटो : अमर उजाला

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कांग्रेस सरकार का साथ देने वाले निर्दलीय और बसपा से आए विधायकों ने पार्टी नेतृत्व को साफ कह दिया है कि हमने साढ़े चार साल तक कांग्रेस और सरकार का पूरा साथ दिया है। बसपा से आए विधायकों ने कहा, हमने कोर्ट में दल बदल का मुकदमा भी झेला, जिसमें हमारी सदस्यता पर भी तलवार लटकी। लेकिन अब कांग्रेस पार्टी की बारी है कि वह हमारा साथ दे। प्रदेश कांग्रेस सह प्रभारी काजी निजामुद्दीन के समक्ष बसपा से कांग्रेस में शामिल होने वाले पांच विधायकों ने यह मांग उठाई है। इनमें राजेन्द्र गुढ़ा शामिल नहीं हैं।

विधायक वाजिब अली, जोगिंदर सिंह अवाना, लाखन सिंह मीणा, दीपचंद खेरिया और संदीप यादव की ओर से यह मांग उठाई गई है। विधायकों ने कहा है कि उनका भविष्य सुरक्षित करने के लिए यह घोषणा की जाए कि उन्हें कांग्रेस का टिकट दिया जाएगा। वाजिब अली ने काजी निजामुद्दीन से मिलकर यह मांग रखी है कि हमने कांग्रेस सरकार बचाई है। विधायक वाजिब अली के साथ संदीप यादव और लाखन सिंह मीणा भी फीडबैक कार्यक्रम में मौजूद रहे। जोगिंदर सिंह अवाना और दीपचंद खेरिया की भी ऐसी ही भावनाओं से उन्होंने सह प्रभारी को अवगत कराया। ताकि वह पार्टी नेतृत्व तक यह मैसेज पहुंचाकर उन्हें कांग्रेस के निशान पर चुनाव तैयारियों के लिए समय रहते उम्मीदवार घोषित करें।

मंत्री राजेंद्र गुढ़ा अब सचिन पायलट खेमे से ही करेंगे टिकट दावेदारी…

छठे विधायक राजेंद्र सिंह गुढ़ा सरकार में मंत्री पद पर काबिज हैं। सीएम अशोक गहलोत और कांग्रेस की अपनी ही सरकार को गुढ़ा जमकर घेर रहे हैं। गुढ़ा सचिन पायलट खेमे में शामिल हो चुके हैं, इसलिए उन्होंने अब तक सह प्रभारियों या पार्टी हाईकमान के सामने यह मांग नहीं उठाई है। क्योंकि पायलट समेत 19 विधायकों के साथ जो होगा, वही 20वें समर्थक विधायक राजेन्द्र गुढ़ा के साथ भी होगा। यह उन्हें अच्छे से मालूम है। इसलिए राजेंद्र गुढ़ा अब सचिन पायलट खेमे से ही अपने टिकट की दावेदारी करेंगे। वैसे राजेन्द्र गुढ़ा अपने स्तर पर उदयपुरवाटी से विधानसभा चुनाव लड़ने में पूरी तरह सक्षम हैं। क्योंकि वहां उनका बड़ा जनाधार है।

13 में से 11 निर्दलीय विधायकों ने मांगे कांग्रेस से टिकट…

सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस को समर्थन देने वाले 13 में से 11 निर्दलीय विधायक सिरोही से संयम लोढ़ा, दूदू से बाबूलाल नागर, महवा से ओमप्रकाश हुड़ला, शाहपुरा से आलोक बेनीवाल, थानागाजी से कांति प्रसाद, खंडेला से महादेव सिंह खंडेला, कुशलगढ़ से रमिला खड़िया, गंगानगर से राजकुमार गौड़, गंगापुर से रामकेश मीणा, बस्सी से लक्ष्मण मीणा, किशनगढ़ से सुरेश टांक ने भी कांग्रेस से टिकट की मांग की है। निर्दलीय विधायकों का कहना है कि उन्होंने कांग्रेस सरकार को मजबूत बनाने और बहुमत देने के लिए अपना पूरा सपोर्ट दिया, जिसके बूते सरकार साढ़े चार साल तक टिक पाई है। उन्होंने यह भी कहा कि सियासी संकट के दौरान हमें भी खरीदने की कोशिश की गई। लेकिन हमने पार्टी से गद्दारी नहीं की। जबकि 2 निर्दलीय विधायक बहरोड से बलजीत सिंह यादव और मारवाड़ जंक्शन से खुशवीर सिंह जोजावर ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। विधायक बलजीत सिंह यादव ने बेरोजगारों और किसानों के मुद्दे पर अलग-अलग क्षेत्रों में युवाओं के साथ दौड़ लगाकर कांग्रेस सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जबकि खुशवीर जोजावर विधानसभा में बड़ा दावा कर चुके हैं कि उन्होंने एक किताब लिखी है और जिस दिन इस किताब का विमोचन होगा। देश के लोकतंत्र में भूचाल आ जाएगा। उन्होंने राजस्थान के सियासी संकट को लेकर किताब लिखी है। जिसका नाम है- “माई मेमोरी ऑफ दोज़ डेज़”। विधायक का दावा है कि इसमें सच्चाई लिखी है, जो लोकतंत्र में भूचाल ला देगी।

ये है विवाद का असली कारण…

जिन सीटों से ये 13 निर्दलीय और 6 बसपा विधायक जीत कर आए और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। उन सीटों से हारे हुए कांग्रेस पार्टी के मूल प्रत्याशियों ने अपनी व्यथा प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा और पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा को सुनाई है। उन्होंने कहा, हमें कांग्रेस के शासन में ही परेशान किया जा रहा है। कांग्रेस के असली कार्यकर्ताओं के कहने से काम नहीं हो रहे और हमें हराकर आने वाले विधायक सत्ता का सुख भोगने के साथ ही हमें कांग्रेस का दुश्मन बता रहे हैं। जबकि हमने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और बागी होकर चुनाव लड़कर जीतने वाले आज सत्ता भोग रहे हैं। सीएम गहलोत और उनके ऑफिस में हमारे पत्रों की अनदेखी हो रही है।

जो नेता हम कांग्रेस प्रत्याशियों को हराकर विधायकी का चुनाव जीते हैं, सरकार और शासन तंत्र सहयोग देकर उन्हें ही प्रभावशाली बना रहा है। इससे कांग्रेस पार्टी का कार्यकर्ता और नेता निराश और हताश है। क्योंकि जिन्होंने कांग्रेस की खिलाफत की अब वही विधायक असली कांग्रेसी बनने का नाटक कर रहे हैं। माना जा रहा है कांग्रेस के टिकट पर चुनाव हारे वो 19 प्रत्याशी आगामी चुनाव में खुद को टिकट नहीं मिलने पर बगावत कर खु्द भी निर्दलीय या अन्य पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ सकते हैं। इससे कांग्रेस को वोट दो फाड़ हो जाएगा और पार्टी को बड़ा नुकसान चुनाव में हो सकता है। यदि इनमें से कोई प्रत्याशी चुनाव नहीं भी लड़ेगा, तो अन्य प्रत्याशी की खिलाफत ज़रूर करेगा यह तय माना जा रहा है।

गहलोत ने ज़्यादातर विधायकों को साधकर रखा…

सीएम गहलोत ने कांग्रेस सरकार को समर्थन देने 13 निर्दलीय और 6 बसपा से आने वाले कुल 19 विधायकों में से 11 विधायकों को विभिन्न बोर्ड, निगम, आयोग में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और बसपा से आने वाले 6 में से एक विधायक राजेंद्र गुढ़ा को मंत्री बनाकर लाभ का पद देकर साध रखा है। लेकिन समर्थन देने वाले निर्दलीय और बसपा विधायकों को मंत्री पद की आस थी। जो पूरी नहीं हो सकी। इसकी बड़ी टीस उनमें है। मंत्री राजेंद्र गुढ़ा भी खुदको मिले सैनिक कल्याण, नागरिक सुरक्षा, होमगार्ड विभाग में राज्य मंत्री पद से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं। वह सार्वजनिक रूप से इसकी नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं।

सह प्रभारी सचिव काजी निजामुद्दीन नहीं दे सके कोई आश्वासन…

सह प्रभारी काजी निजामुद्दीन ने स्पष्ट तौर पर इन विधायकों को कोई आश्वासन नहीं दिया। क्योंकि यह उनके भी हाथ की बात नहीं है। लेकिन उन्होंने इतना ज़रूर कहा कि आपकी भावनाएं हाईकमान तक पहुंचा दी जाएंगी। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के सामने फिलहाल सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम और पीसीसी चीफ रहे सचिन पायलट के बीच बरसों से चला आ रहा कुर्सी, सत्ता संघर्ष और वर्चस्व का विवाद सुलझाना एक बड़ी चुनौती है। दोनों के बीच में बनी खाई को पाटने में अब तक पार्टी नाकाम रही है। कोई कद्दावर, मजबूत और सक्षम नेता ही इस विवाद का निपटारा कर सकता है। लेकिन इसके लिए मजबूत डिसीजन लेकर कड़ाई से लागू करवाने होंगे, विधानसभा चुनाव से पहले इसमें भी बड़ा रिस्क है।

क्योंकि कांग्रेस पार्टी एक और विधानसभा चुनाव में जीत के लिए अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों को साथ में रखना चाहती है, दूसरी ओर पार्टी चुनाव में सीएम चेहरा गहलोत का ही रखना चाहती है। लेकिन सचिन पायलट को खोना भी नहीं चाहती। लेकिन पायलट सीएम गहलोत को किसी भी सूरत में फिर से मुख्यमंत्री का फेस बनते नहीं देखना चाहते हैं। इस विवाद का निपटारा पार्टी का कौन सा सक्षम नेता करवाएगा? अभी यह भी तय नहीं हो पाया है। सियासी जानकार मानते हैं कि टालमटोल और विवाद को लटकाकर रखने की पार्टी हाईकमान की ऐसी ही रणनीति रही, तो चुनाव से ठीक पहले पार्टी में भीषण विवाद उपजेंगे। चुनाव में सिर फुटव्वल जैसे हालात बन सकते हैं। इसका नुकसान कांग्रेस को होगा।फिलहाल चुनाव से पहले कैसे पार्टी संगठन मजबूत होगा, यह भी प्रभारी रंधावा और सह प्रभारियों के लिए बड़ी चुनौती है।

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