बिना अफसर चल रही स्वर्ण नगरी
– फोटो : Amar Ujala Digital

विस्तार

भारत-पाक बॉर्डर पर बसा जैसलमेर जिला करीब 38 हजार वर्ग किमी क्षेत्रफल, सात लाख से ज्यादा आबादी और 800 से अधिक गांव। इतने बड़े जैसलमेर जिले में कई अधिकारियों के पद खाली पड़े हैं। कहने को तो यह जिला है, लेकिन अधिकांश विभागों के DLO के पद खाली हैं। जनता से सीधे जुड़े जलदाय व डिस्कॉम में अधीक्षण अभियंता के पद खाली हैं। डिस्कॉम में एक्सईएन जे.आर. गर्ग को और जलदाय विभाग में एक्सईएन जेराराम को एसई का चार्ज दिया हुआ है।

लंबे समय से अतिरिक्त चार्ज

एक-दो महीने के लिए तो चार्ज देना समझ में आता है, लेकिन छह महीने से अधिक समय तक चार्ज संभाले हुए अन्य बैठे हैं। इसके अलावा एईएन सुनील मूलचंदानी को एक्सईएन विजिलेंस, एक्सइएन कैलाश कुमार एक्सईएन आरडीएसएस, जेईएन मोहनगढ़ को एईएन का चार्ज सहित 10 से 12 पदों पर अधीनस्थ अधिकारी बड़े पदों पर बैठे हैं। इसी तरह जलदाय विभाग में कई जेईएन सहायक अभियंता के पद पर तो कई सहायक अभियंता एक्सईएन के पद पर काम कर रहे हैं।

गौरतलब है कि वर्तमान में विकास अधिकारी तो तैनात कर दिए हैं, लेकिन गत साल जिले की सात पंचायत समितियों में से केवल तीन या चार ही विकास अधिकारी लगे हुए थे। ऐसे में जनप्रतिनिधियों ने अपने-अपने हिसाब से इन्हें अन्य समितियों के चार्ज दे रखे थे। यह सिलसिला छह महीने से अधिक तक चला।

बाड़मेर SP को जैसलमेर का अतिरिक्त कार्यभार

पुलिस अधीक्षक भंवर सिंह नाथावत 20 दिन पहले सेवानिवृत हो गए। सरकार ने अभी तक नया SP नहीं लगाया है। पहले कुछ दिन ASP मोटाराम को चार्ज दे दिया गया और बाद में बाड़मेर SP को जैसलमेर SP का अतिरिक्त चार्ज दे दिया गया। क्या IPS कम पड़ गए, जो ऐसे हालात हैं या फिर कोई अफसर रेगिस्तानी ज़िले में आने को तैयार नहीं है? जो ज़िले की कानून व्यवस्था पड़ोसी ज़िले के कप्तान को दे दी गई। अंदाजा लगाया जा सकता है कि कानून व्यवस्था को लेकर इतनी लापरवाही क्यों बरती जा रही है। जिले में एसपी का पद संभावित तौर पर पहली बार इतने दिनों तक खाली रहा है।

जिले के महत्वपूर्ण विभाग उधारी के अफसरों के भरोसे

उपनिवेशन डीसी का पद खाली है, यूआईटी सचिव का पद खाली है। जैसलमेर एसडीएम इन पदों पर कार्य कर रहे हैं। खनन विभाग में एमई का पद काफी दिनों से खाली पड़ा है और अतिरिक्त चार्ज के भरोसे है। गौरतलब है कि पिछले दिनों जैसलमेर में करोड़ों रुपये का अवैध खनन हो रहा था। बावजूद इसके इस पद पर स्थाई अधिकारी की नियुक्ति नहीं की जा रही है। जिला परिषद सीईओ दाताराम को एपीओ कर दिया लेकिन नए सीईओ की तैनाती नहीं की गई। यह पद तो पिछले एक साल से अतिरिक्त चार्ज के भरोसे ही था। कुछ समय पहले दाताराम को सीईओ लगाया गया था लेकिन एक बार फिर खाली हो गया। पंचायती राज जैसे सबसे बड़े विभाग के मुखिया का पद खाली रखना समझ से परे है। इतना ही नहीं अतिरिक्त चार्ज के चलते कई बार भ्रष्टाचार व भर्ती में गड़बड़ी के आरोप भी लग चुके हैं।

राजनीति से प्रभावित नजर आ रहा है मामला

अधिकारियों को नहीं लगाने के पीछे साफ तौर पर राजनीति नजर आ रही है। एक-दो अधिकारियों के पद अतिरिक्त चार्ज पर हो, तो समझ में आता है लेकिन हर विभाग में छोटे से लेकर बड़े पद पर कहीं न कहीं अतिरिक्त चार्ज पर काम चल रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जानबूझकर ऐसा किया जाता है, ताकि कोई भी नेता अपना, अपने चहेतों या फिर अपने किसी विशेष गांव या इलाके का काम आसानी से करवा सके।

आमजन का हो रहा है नुकसान

पहला नुकसान यह है कि अधीनस्थ या अतिरिक्त कार्यभार वाला अधिकारी मेहरबानी करने वाले के भरोसे ही चलता है। दूसरा पब्लिक के काम को लेकर गंभीर नहीं होता। जो काम सिफारिश का होता है, उसे तो वह कर देता है, लेकिन आम आदमी के काम के लिए नियम और रोड़े अटकाए जाते हैं। यही बहाना रहता है कि स्थाई तौर पर अधिकारी लगेंगे, तो यह काम होगा। कुछ फाइलों पर साइन हो जाते हैं, तो कुछ फाइलों पर साइन नहीं होते। कुल मिलाकर अधिकारी नहीं होने पर पब्लिक को नुकसान ही होता है।

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