सांकेतिक तस्वीर
– फोटो : सोशल मीडिया

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पाली में जैतारण से बीजेपी विधायक अविनाश गहलोत ही बीजेपी से टिकट के पहले और प्रमुख दावेदार हैं और वह युवा भी हैं। अविनाश के अलावा बीजेपी में कई और भी दावेदार हैं, जो टिकट के लिए पूरा दमखम लगा रहे हैं। वहीं, कांग्रेस भी सत्ता में लौटने के लिए जिताऊ उम्मीदवार की तलाश में है।

साल 1952 से 1962 तक रायपुर क्षेत्र भी इसमें मिला हुआ था। 1955 में उत्तर पश्चिम जैतारण से निर्दलीय प्रत्याशी मोहन सिंह विधायक रहे और 1967 में शंकरलाल के जीतने पर यह सीट कांग्रेस की झोली में चली गई। साल 1972, 1977, 1980 और 1985 में यहां कांग्रेस का कब्जा रहा।

साल 1990 में पलट गई बाजी, बीजेपी की एंट्री

साल 1990 में बीजेपी के सुरेन्द्र गोयल ने इस सीट पर जीत हासिल की और 1993, 1998 और 2003 में भी इस जीत को बरकरार रखते हुए लगातार तीसरी बार इस सीट पर बीजेपी का कब्जा बरकरार रखा। जबकि खुद चौथी बार इस क्षेत्र से चुनकर विधानसभा में पहुंचे।

साल 2008 में निर्दलीय ने किया कब्जा, 2013 में फिर लौटी बीजेपी

इसके बाद पासा पलटा और 2008 में निर्दलीय प्रत्याशी दिलीप चौधरी इस सीट पर काबिज हो गए। लेकिन 2013 में फिर से बीजेपी के सुरेन्द्र गोयल ने जीत हासिल कर इस सीट पर कब्जा कर लिया। सुरेंद्र गोयल वसुंधरा सरकार में मंत्री भी रहे। इसके बाद 2018 में अविनाश गहलोत को बीजेपी प्रत्याशी के रूप में चुनाव में उतारा गया और यह सीट एक बार फिर से बीजेपी के खाते में चली गई। वर्तमान में यहां अविनाश गहलोत बीजेपी से विधायक हैं।

जैतारण विधानसभा चुनाव के 1990 से अब तक के चुनाव परिणाम

साल 2018 में हुए चुनावों में बीजेपी ने सुरेन्द्र गोयल का टिकट काटकर अविनाश गहलोत को प्रत्याशी के रूप में चुनाव में उतारा और इन्होंने यहां से जीत हासिल की। यहां पर साल 1990, 1993, 1998, 2003 और 2013 में बीजेपी के सुरेन्द्र गोयल ने जीत हासिल की थी। तब सुरेंद्र गोयल वसुंधरा राजे खेमे के नेता थे, लेकिन आलाकमान से टिकट कटा। बाद में सुरेंद्र गोयल ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और साल 2018 में अविनाश गहलोत के विजयी होने से बीजेपी विधायक के रूप में अविनाश वर्तमान में यहां पर काबिज हैं।

बीजेपी मजबूत स्थिति में, लेकिन सुरेंद्र गोयल पर दांव खेला तो कांग्रेस देगी कांटे की टक्कर

जैतारण से आखिरी बार कांग्रेस 1985 में चुनाव जीती है। उसके बाद मात्र एक बार यह सीट निर्दलीय के खाते में गई है। वरना यहां पर बीजेपी प्रत्याशियों की जीत होती रही है। कांग्रेस की बात करें, तो दिलीप चौधरी को भी दो बार कांग्रेस ने यहां से टिकट दिया, लेकिन दोनों ही बार वे कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में यहां से पराजित हुए हैं।

ये हैं मजबूत दावेदार

नवंबर 2023 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव ने दोनों ही दलों ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं, जिसके चलते कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों से पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने टिकट मांगना भी शुरू कर दिया है। बीजेपी से जहां वर्तमान विधायक अविनाश गहलोत, संतोष वैष्णव, महेन्द्र कुमावत रसाल कंवर और कमला चौहान सहित कई अन्य भाजपाई टिकट के लिए दावेदारी जता रहे हैं।

वहीं, दूसरी ओर जैतारण से पांच बार बीजेपी विधायक रहे और अब कांग्रेस में शामिल हो चुके सुरेन्द्र गोयल, पूर्व विधायक दिलीप चौधरी, युवा नेता राजेश कुमावत, किशोर चौधरी, अभिषेक चौधरी, गोपाल सिंह ईडवा और पूर्व मंत्री राजेन्द्र चौधरी का नाम कांग्रेस से टिकट के लिए चर्चा में चल रहा है। इनके अतिरिक्त दोनों ही दलों से टिकट मांगने वाले कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की काफी लंबी सूची है। लेकिन उसमें से कुछ मुख्य दावेदार ये ही हैं। इसी के साथ कोई अन्य जीतने वाला दावेदार भी टिकट लाने में सफल हो सकता है। अगर कांग्रेस पार्टी ने सुरेंद्र गोयल को टिकट दे दिया तो बीजेपी के वोट बैंक में एक बड़ी सेंध लग सकती है। क्योंकि वे पूर्व बीजेपी विधायक और मंत्री रहे हैं।

ये होंगे चुनावी मुददे

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस सरकार का जनहित की योजनाओं के माध्यम से प्रदर्शन प्रदेश के साथ ही इस क्षेत्र में अच्छा रहा है, जिससे चलते आम जन को महंगाई से राहत मिली है। इनमें 25 लाख का चिरंजीवी स्वास्थ्य योजना बीमा, निशुल्क जांच, दवा और उपचार, 100 यूनिट घरेलू बिजली फ्री, सम्पूर्ण फ्यूल सरचार्ज माफी, 2000 यूनिट तक प्रतिमाह किसान का बिजली बिल माफ, किसान के खाते में सालाना 12 हज़ार रुपये सब्सिडी, 500 रुपये में गैस सिलेंडर, अन्नपूर्णा राशन किट, महिलाओं को फ्री स्मार्टफोन, स्कूली बच्चों को दो जोड़ी फ्री यूनिफार्म और सिलाई, महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल, तीन लाख युवाओं को रोजगार जैसी योजनाएं प्रमुख हैं।  लेकिन जैतारण विधानसभा में इस चुनाव में मुख्य मुद्दा क्षेत्र में शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवाना, युवाओं को रोजगार और क्षेत्र का चंहुमुखी विकास रहेगा।

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