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मध्यप्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच खुद को ओबीसी का बड़ा हितैषी साबित करने की होड़ है। जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का नारा देने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने राज्य में बिहार की तर्ज पर जातिगत गणना कराने का भी वादा किया है। हालांकि जहां तक टिकट वितरण का सवाल है तो दोनों प्रतिद्वंद्वी दलों ने आनुपातिक भागीदारी के सवाल से पीछे हटते हुए जीत की संभावना और वर्चस्व वाली जातियों पर ज्यादा प्यार लुटाया है। मसलन मध्यप्रदेश में ओबीसी की आबादी 51 फीसदी है। कांग्रेस के फार्मूले के हिसाब से इस वर्ग को 230 सीटों में से 117 सीटों पर उम्मीदवारी मिलनी चाहिए। हालांकि पार्टी ने इस वर्ग के महज 62 उम्मीदवार (27 फीसदी) उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। भाजपा ने कांग्रेस से नौ ज्यादा 71 उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है।

राजस्थान में जाट को वरीयता

राजस्थान में ओबीसी की आबादी करीब 37 फीसदी है। दोनों ही दलों ने टिकट वितरण में संपूर्ण ओबीसी को अमूमन आनुपातिक भागीदारी तो दी है, मगर इसमें जाट बिरादरी को खासी वरीयता दी है। मसलन कांग्रेस ने जिन 72 सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं, उनमें से 34 जाट बिरादरी के हैं। इसी प्रकार भाजपा के 70 ओबीसी उम्मीदवारों में 33 इसी बिरादरी के हैं। मतलब दोनों दलों ने 12 फीसदी जाट बिरादरी को ओबीसी के हिस्से की करीब 45 फीसदी सीटें दे दी हैं।

एसटी में मीणा पहली पसंद

राज्य में एसटी सुरक्षित सीटों की संख्या 25 फीसदी और आबादी करीब 13 फीसदी है। दोनों ही दलों ने सुरक्षित सीटों के इतर भी इस वर्ग के उम्मीदवार पर भरोसा जताया है। हालांकि दोनों ही दलों ने इस वर्ग की रसूख वाली जाति मीणा को सबसे अधिक टिकट दिए हैं। इसकी प्रकार जिताऊ उम्मीदवार नहीं मिलने के कारण भाजपा ने 9 फीसदी आबादी वाली मुस्लिम बिरादरी को उम्मीदवारी से दूर रखा है तो कांग्रेस ने इस बिरादरी के 15 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।






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