BJP candidate Gajendra singh Shekhawat Ashok Gehlot Rajasthan Election News

Rajasthan Election 2023
– फोटो : AMAR UJALA

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मारवाड़ के सियासी मिजाज को समझना आसान नहीं है। रेगिस्तान के रेतीले धोरों (रेत के टीले) की तरह यहां की राजनीति भी बदलती है। मारवाड़ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सियासी गढ़ है। आजादी के बाद से लेकर अब तक गहलोत ही मारवाड़ के सबसे चर्चित और प्रभावी चेहरा हैं।

गहलोत मारवाड़ के एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। गहलोत से पहले जयनारायण व्यास भी प्रदेश के तीसरे मुख्यमंत्री रहे थे। बाड़मेर से आने वाले जसवंत सिंह भी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं, जिनके पास वित्त, रक्षा और विदेश जैसे ताकतवर मंत्रालय थे, लेकिन पिछले तीन दशक में मारवाड़ में गहलोत के सामने भाजपा में कोई प्रभावशाली नेता नहीं हो पाया, जो सीधे तौर पर टक्कर दे सके। पांच साल में पहली बार भाजपा में गजेंद्र सिंह शेखावत मुख्य भूमिका में हैं। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने 2019  लोकसभा चुनाव में सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को न केवल शिकस्त दी बल्कि सीएम की गृह विधानसभा सीट सरदारपुरा से बढ़त भी ली थी। इससे मारवाड़ में गहलोत की अजेय की छवि पर असर पड़ा। इससे 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच मारवाड़ का मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सरकार के कराए विकास कार्य, सरकारी योजनाओं और सात गारंटियों के जरिए अपने गढ़ को बचाने में जुटे हैं. वहीं केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी के साथ मिलकर उस किले पर भगवा पताका फहराने के लिए सियासी चक्रव्यूह रचने में दिन रात एक किए हुए हैं। लंबे समय तक गहलोत के करीबी रहे और जोधपुर के मेयर रामेश्वर दधीच को भाजपा में शामिल कराकर ऐसा ही संकेत दिया है। यह चुनाव मारवाड़ में गहलोत और गजेंद्र के बीच सियासी वर्चस्व कायम करने की जंग भी है। अब देखना है रेगिस्तान का सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा।

मिर्धा परिवार ही आमने-सामने

जोधपुर के सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र के दुकानदार संतोष माली कहते हैं कि इस सीट से सीएम अशोक गहलोत नहीं यहां की जनता चुनाव लड़ रही है। सीएम दूसरी सीट पर प्रचार कर रहे हैं। लोकसभा  इसी जिले के ओसियां के वोटर मुन्ना सिंह सिहाग कहते हैं कि इस बार कांग्रेस ने कुछ काम नहीं कराया। इस बार प्रदेश में भाजपा की सरकार बनानी है। इसी विधानसभा सीट के असलम कहते है कि ऐसा लग रहा है कि भाजपा का माहौल है। नागौर केे चुन्नी लाल सैनी कहते हैं कि इस बार कांग्रेस के हरेंद्र मिर्धा और भाजपा से ज्योति मिर्धा यानी परिवार ही आमने-सामने है। निर्दलीय हबीबुर्रमान भी तालठोक रहे हैं। हबीबुर्रमान से चुनाव एकतरफा हो गया है।

जोधपुर में आईआईटी, एम्स जैसे बड़े संस्थान

मारवाड़ से पहले बड़े पैमाने पर लोग रोजगार के लिए पलायन करते थे। अन्य राज्यों के अलावा विदेशों तक में यहां के लोग रहते हैं। ऐसे लोग वोट प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। अब जोधपुर में आईआईटी, एम्स, लॉ यूनिवर्सिटी सहित कई महत्वपूर्ण संस्थान खुलने से शिक्षा के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं है। मारवाड़ राजस्थान का मारवाड़ इलाका हैंडीक्राफ्ट और मसालों के लिए जाना जाता है। खासतौर पर जोधपुर के हैंडीक्राफ्ट की मांग विदेशों तक में है।

पोकरण रामदेव मंदिर, परमाणु परीक्षण के लिए सुर्खियों में रहा बाबा रामदेव का मंदिर श्रद्धालुओं का आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। जोधपुर ओसियां में माताजी का मंदिर भी है, जिनके दर्शन करने के लिए राज्य के अलग-अलग हिस्से से लोग आते हैं। जैसलमेर के पोकरण में ही अटल बिहारी वाजेपयी की सरकार ने परमाणु परीक्षण किया था। बाड़मेर में लग रही रिफाइनरी से पूरे मारवाड़ की आर्थिक स्थित बदल जाने की उम्मीद है। बड़ी संख्या में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा।

जाट, राजपूत बिश्नोई और एससी प्रभावी

मारवाड़ में सात जिलों की 43 सीटें आती हैं। मारवाड़ प्रदेश का उत्तरी और पश्चिमी इलाका है। जाट, राजपूत, विश्नोई, वैश्य के अलावा एससी वोटरों की भी अच्छी संख्या है। इन जातियों को साधने में कामयाबी पर ही जीत पक्की मानी जाएगी। कांग्रेस-भाजपा के लिए पहली बार हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी से चुनौती मिल रही है। कई सीटों पर आरएलपी कांग्रेस और भाजपा के लिए समीकरण बिगाड़ने का काम कर रही है, जिससे पार पाना दोनों ही दलों के लिए चुनौती है।

अलग-अलग समीकरण

43 सीटों पर समीकरण अलग-अलग है। कुछ पर जातिगत तो कुछ पर धार्मिक ध्रुवीकरण है। चुनावी चेहरे के अलावा बेरोजगारी, स्थानीय मुद्दे भी प्रत्याशियों की जीत हार में भूमिका निभाएंगे।  देश की आजादी के 75 साल बाद भी इस इलाके में पानी की समस्या है, जिसको लेकर स्थानीय स्तर पर विधायकों और सरकार के प्रति नाराजगी भी रहती है, इसीलिए 2013 में 43 में से 39 सीटें लेने वाली भाजपा को 2018 में महज 13 सीटों से संतोष करना पड़ा था। 2008 में कांग्रेस को अच्छी सीटें मिलीं, लेकिन 2013 में भाजपा बंपर सीटें मिलीं।

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